बुधवार, 28 अगस्त 2013

पृथ्वी का कवच - ओज़ोन आवरण




पृथ्वी का बाहरी आवरण हमारा चिर परिचित वायु मंडल है जिसका मुख्य अवयव है , हमारी जीवन दायिनी ओक्सिजन गैस ! ईश्वर ने ये कमाल की रचना की है . हमारे प्राणों की आवश्यकता बनाया - ओक्सिजन गैस को और उसे उपलब्ध कराया निशुल्क सतत् सर्वत्र ! लेकिन ईश्वर के उपकारों की सारी सीमायें हम जानते तक नहीं . ईश्वर की कृपा इस वायुमंडल के बाहर भी है हमारे जीवन के सुरक्षा कवच के रूप में , जिसका वैज्ञानिक नाम है - ओज़ोन आवरण ! इस लेख में हम चर्चा करेंगे उसी ओज़ोन आवरण की .

सूर्य की किरणे हमारे जीवन के लिये उतनी ही आवश्यक हैं, जितना हमारा भोजन . शक्ति का स्त्रोत है ये किरणे . हमारा ही नहीं बल्कि सारी वनस्पति , जीव, जन्तु, पशु सबका ही जीवनाधार  है - ये किरणे ! लेकिन सूर्य की उन्ही किरणों के साथ साथ आता है विकिरण यानि radiation। इस विकिरण का नाम है UV रेडीयेशन ; इसमे UV का अर्थ है - अल्ट्रा वायोलेट . ये रेडीएसन मानव शरीर और अन्य प्राणियों के लिये घातक हैं . इससे होने वाली हानियों की चर्चा हम इस लेख मे बाद मे करेंगे , पहले हम ये चर्चा करें की ईश्वर ने किस प्रकार हमें इस रेडीएसन से बचा रखा है .

पृथ्वी की सतह से करीब १० किलोमीटर की दूरी पर हमारे वायुमंडल की रचना मे एक बदलाव आता है . बदलाव ये है कि हमारे वायुमंडल मे पायी जाने वाली एक गैस ओज़ोन की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है . ओज़ोन गैस ओक्सिजन परिवार की दूसरी गैस है जिसकी आणविक संरचना ओक्सिजन से जरा भिन्‍न है . ओक्सिजन में दो परमाणु होते हैं इसलिये उसका रासायनिक नाम है O2 और ओज़ोन मे ये संख्या तीन  है इसलिये इसका नाम है O3. हमारे वायुमंडल में ओज़ोन की मात्रा नगण्य है - दस लाख के सामने आधा यानि कि एक से भी कम कण  ! बाहरी आवरण मे ये मात्रा बढ़ कर हो जाती है दस लाख मे दस कण  ! यानी कि बीस गुना अधिक . वायुमंडल में ओजोन की अधिकतम मात्रा , करीब ९० % पायी जाती है पृथ्वी की सतह के ऊपर १० से १७ किलोमीटर की दूरी के बीच में और ये फैली रहती है करीब ५० किलोमीटर की दूरी तक . इस क्षेत्र का वैज्ञानिक नाम है स्ट्राटोस्फीयर ! बोलचाल की भाषा में इसे कहते हैं ओजोन लेयर .

आइये चर्चा करें कि ओजोन आखिर करता क्या है ! जब सूर्य देव की किरणे पृथ्वी की तरफ बढती हैं तो उन्हें सबसे पहले पृथ्वी के बाह्य आवरण यानि की १०-५० किलोमीटर के ओजोन कवच को भेदना पड़ता है . सूर्य की किरणों में मिली होती हैं - अनिष्टकारी UV किरणे. जब ये किरणें बाह्य मंडल में उपस्थित ओक्सिजन के अणुओं से टकराती है तो २ परमाणुओं वाला ओक्सिजन यानि की O2 विभक्त हो जाता है दो अलग अलग परमाणुओं में यानि O + O में . इस प्रकार विभक्त ओक्सिजन परमाणु जुड़ जाता है एक अविभाजित O2 से और निर्माण होता है तीन परमाणुओं से युक्त ओजोन यानि O3 का . जब UV किरणें टकराती हैं ओजोन से तो उसे फिर विभाजित कर देती है O2 और O  में . इस प्रकार टूटने ,जुड़ने और फिर टूटने का एक लगातार सिलसिला शुरू हो जाता है . इस पूरी प्रक्रिया में UV किरणें बाह्य वायुमंडल में ही शोषित हो जाती हैं और पृथ्वी के जीवनदायी मंडल में पहुँचती हैं , जीव मात्र के लिए गुणकारी सूर्य की किरणें !

ये तो चर्चा हुई ईश्वर के उपकारों की ; आइये अब चर्चा करें मनुष्य की मूर्खता की जो अपनी करतूतों से इस परम आवश्यक ओजोन कवच को धीरे धीरे नष्ट कर रहा है . ओजोन की दुश्मन हैं कई प्रकार की रासायनिक गैसें , जिनमें दो मुख्य हैं क्लोरिन और ब्रोमिन ! वैसे तो ये गैसें प्राकृतिक रूप से वायुमंडल में प्रस्तुत हैं , लेकिन वायुमंडल अपने संतुलित समीकरण के कारण अपने अन्दर होने वाले सभी परिवर्तनों को पचा लेता है ; समस्या ये हैं की इस समीकरण को असंतुलित कर रही है मनुष्य की संकीर्ण सोच . मनुष्य निरंतर औद्योगिक विकास के नाम पर ऐसे रासायनिक कारखाने लगा रहा है, जहाँ ये क्लोरिन और ब्रोमिन गैसें वायुमंडल में निरंतर छोड़ी जा रही हैं, धुंए के रूप में जिसमें शामिल होते हैं इनसे निर्मित रासायनिक पदार्थ जिन्हें विज्ञान की भाषा में ऑर्गन हेलोजन कम्पाउंड कहा जाता है . इन पदार्थों में क्षमता होती है की ये पृथ्वी के आंतरिक वायुमंडल की सीमा को पार कर के बाह्य वायुमंडल तक पहुँच जाते हैं . बाह्य वायुमंडल में पहुँच कर जब इनका सामना होता है UV किरणों से तब  ये योगिक रसायन टूट कर मुक्त क्लोरिन और ब्रोमिन को स्वतंत्र कर देते हैं . ये मुक्त क्लोरिन और ब्रोमिन के कण एक ऐसी लगातार प्रतिक्रिया को प्रारंभ कर देते हैं , जिसमें ओजोन अणुओं का टूटना शुरू हो जाता है . ये विनाश कितना विशाल है ये इस बात से पता चलता है की मुक्त क्लोरिन या ब्रोमिन का एक कण एक लाख ओजोन अणुओं को समाप्त कर देता है .

इस तरह एक तेज गति से बाह्य सुरक्षा कवच में बहुत तीव्र गति से ओजोन की मात्र का ह्रास हो रहा है . परिणामस्वरूप UV किरणों को रोकने वाला ये ओजोन आवरण इस अवरोध के लिए कमजोर पड़ता जा रहा है . पृथ्वी तक धीरे धीरे घातक UV किरणें पहुँचने लगी हैं . वैज्ञानिकों की गणना है की पृथ्वी के वायुमंडल में ओजोन का स्तर ४ % प्रति दशक की दर से कम हो रहा है . इस तरह के घटे हुए स्तर के ओजोन वाले हिस्सों को ओजोन छिद्र कहते हैं .

बाह्य वायुमंडल के घटते हुए सुरक्षा चक्र से होने वाली हानियों का प्रभाव न सिर्फ मानव मात्र पर होगा , बल्कि  जल और थल के जीव जंतु , सारी  वनस्पति , ऋतुएँ सब कुछ किसी न किसी रूप में प्रभावित होंगे . अब तक के शोध बताते हैं कि U V किरणें मनुष्य की त्वचा और आँखों को प्रभावित करेंगी , जिससे त्वचा का कर्क रोग तथा आँखों के मोतिया और अंधेपन में बढ़ोतरी होगी . इसके अलावा सीधे या अगोचर रूप में पूरे शरीर पर प्रभाव पड़ेगा . इन किरणों से मनुष्य को विटामिन डी बहुत बढ़ी हुई मात्रा  में मिलेगा , जिससे मृत्यु दर बढ़ने की सम्भावना है .

लन्दन की एक जूलोजी संसथान ने खोज की जिसमें कलिफोर्निया के तटवर्ती समुद्र से १५० व्हेल मछलियों की त्वचा पर बायोप्सी की गयी . ये पाया गया की सबकी त्वचा सूरज की किरणों से प्रभावित हैं , ये प्रभाव सीधा U V किरणों के असर से जुड़ा . अनुमान है फसलें भी इससे प्रभावित होंगी . चावल की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए आवश्यक होता है सायनोबैक्टीरिया - जिसके बारे में परिक्षण बताते हैं की इस विकिरण के सामने वह बचेगा नहीं .

हानियों पर असली ज्ञान तब प्राप्त होगा जब ये विकिरण और अधिक विकसित रूप में पृथ्वी पर पहुंचेगा . एक बात तो तय है की इश्वर ने मनुष्य के उपकार में कोई कमी नहीं छोड़ी और मनुष्य ने अपने स्वयं के विनाश के साधन जुटा  लिए .

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