गुरुवार, 18 जुलाई 2013

विज्ञान की दृष्टि में जीवात्मा




अगर एक वैज्ञानिक से पूछा जाए की प्राण  क्या है , तो उसके पास कोई बहुत स्पष्ट उत्तर नहीं होगा . लम्बी चौड़ी व्याख्या तो वो करने लगेगा, लेकिन एक परिभाषा उसके पास नहीं मिलेगी .अगर ये पूछा जाए की जीवित होने के क्या लक्षण हैं ! इस प्रश्न के उत्तर में जैविक विज्ञान-विद ये लक्षण बताएँगे -

१.     जीवित प्राणी किसी न किसी रूप में ऊर्जा को अपने अन्दर लेता है .
२.     जीवित प्राणी अपने अन्दर से अपान वस्तुओं का त्याग करता है .
३.     जीवित प्राणी निरंतर परिवर्तनशील है.
४.     जीवित प्राणी वातावरण से प्रभावित होता है .
५.     जीवित प्राणी की संरचना में लम्बे अन्तराल में मौलिक परिवर्तन भी आते हैं .

एक विज्ञान विद से पूछा जाए की पृथ्वी पर जीवन का प्रारंभ कैसे हुआ ! इस प्रश्न का भी कोई स्पष्ट उत्तर मिलने की सम्भावना नहीं है . हाँ इस पर वो प्रचलित मान्यताओं में तीन का जिक्र करेगा -

 १. पृथ्वी पर विभिन्न धर्मावलम्बियों ने इस विषय पर अपनी अपनी अवधारणायें  बना रखी है ; सबकी सोच अलग अलग होते हुए भी एक बात सबकी मिलती है , वो यह की कोई बहुत बड़ी शक्ति है , जिसने पृथ्वी पर जीवन का प्रारंभ किया . ये अवधारणाएं पीढ़ी दर पीढ़ी पोषित हो रही हैं . हालाँकि इन धारणाओं को सही मानने के लिए कोई प्रमाण नहीं है , लेकिन इन्हें गलत सिद्ध करने के लिए भी कोई प्रमाण नहीं है . इसलिए विज्ञान की नजर में ये धारणायें विज्ञान की सीमा और सम्भावना के बाहर का विषय है . 
 २. दूसरी प्रचलित मान्यता के अनुसार जीवन ब्रह्माण्ड के किसी दूसरे भाग से संयोग मात्र से पृथ्वी पर आया है . कई वैज्ञानिकों का विश्वास है कि किसी पुच्छल  तारे या धूमकेतु या उल्का के पृथ्वी से टकरा जाने के कारण पृथ्वी पर जीव का प्रवेश हुआ है .उनके चिंतन के अनुसार जब ये खंड अपनी जगह से टूट कर सौर मंडल में प्रवेश कर रहे थे  तब सूर्य के मंडल में इनका कुछ भाग तो खो गया  और कुछ भाग अपने आप में जैविक परमाणुओं को लेकर  पृथ्वी पर आ मिला . अपनी बात के पक्ष में उनका कहना है कि प्रत्येक वर्ष पृथ्वी के किसी न किसी भाग में अंतरिक्ष से उल्का खण्डों की वर्षा होती है . ऐसे पुच्छल तारे दूसरे ग्रहों पर भी पहुंचतें हैं , ऐसे उदहारण है वैज्ञानिकों के पास.
 ३. तीसरी और सबसे प्रचलित मान्यता जो सबसे अधिक प्रचलित अवधारणा है विश्व के वैज्ञानिकों के बीच ; उसके अनुसार जीवन का प्रारंभ पृथ्वी पर करीब ३५० करोड़ वर्षों पहले हुआ था . पृथ्वी के मंडल में एक साथ बहुत मात्रा में रासायनिक प्रतिक्रियाएं हुई . १९५० में दो वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया . उस प्रयोग में उन्होंने पृथ्वी के प्राचीन बाह्य मंडल को प्रयोगशाला के अन्दर निर्मित कर के , उस मंडल में कुछ रासायनिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया . उनका कहना था की उन प्रयोगों में जीवाणुओं के अंश ( अमीनो एसिड ) ऐसी अवस्था में पैदा होते हैं .उनका ये भी मानना है कि कालांतर में ये अंश एक दूसरे से जुड़  गए और जिससे हुआ- प्रारंभिक जीव का निर्माण . 
विज्ञान हो या दर्शन - जीवात्मा सबके लिए एक अनबूझ पहेली की तरह है .अंतर ये है की विज्ञान अपने प्रयत्नों से जीवात्मा के आने और जाने के कारण तथा जीवन की संरचना को ढूंढ रहा है और दर्शन ने इसे ईश्वरीय व्यवस्था मान कर जीवन को जीने के निर्देश तैयार कर लिए हैं . दोनों का साथ साथ चलना ही मानवता के लिए हितकारी है !

विज्ञान ने ये भी जानने  का प्रयास किया है की दूसरे  ग्रहों पर जीवन है या नहीं . आइये जानते हैं विज्ञान के इस अनुसन्धान से जुडी कुछ बातों को -
१. वृहस्पति (Jupiter): वृहस्पति ग्रह का बाह्य वातावरण बहुत ही शक्तिशाली गुरुत्व का है ; वहां काफी चाप के साथ तेज हवाएं २२५ मील से लेकर १००० मील प्रति घंटे की रफ़्तार से चलती हैं . तापमान बहुत ठंडा ( -२७० से ३२ डिग्री F के बीच ) रहता है .ये हवाएं और तापमान काफी हद तक जीवन की सम्भावना को नकारता है . सुनने में लगता है की ३२ डिग्री F तापमान तो जीवन के लिए अनुकूल है , लेकिन जहाँ तापमान ३२ डिग्री है वहां का दबाव उतना है जितना समुद्र के नीचे २ किलोमीटर उतरने के बाद होता है . संभवतः ये स्थान भी किसी तरल के अन्दर ही होगा ; वर्ना वायु हर जगह बर्फीली ही है .वायुमंडल में तीन प्रकार की गैसों के बादल पाए गए हैं - अमोनिया , अमोनिया मिश्रित सल्फर और जल ; जल संभवत बहुत ही मोटी मोटी बूंदों के रूप में वायुमंडल में स्थित है . वातावरण में ऊर्जा के भी स्त्रोत हैं , मुख्यतः बिजली (Lightening) , अल्ट्रा वायोलेट किरणे (U-V Rays ), और विद्युत से चार्ज कण . वृहस्पति गृह के अंतर तक जाने से तापमान १००००F डिग्री से ऊपर और दबाव पृथ्वी के समुद्र की सतह का ३० लाख गुना अधिक पाया जाएगा .इन सारे तःथ्यों के आधार पर अनुमान है कि कम से कम उस प्रकार का जीवन वहाँ संभव नहीं जैसा कि हम पृथ्वी पर पातें हैं .

२. मंगल (Mars) :
मंगल ग्रह का सतही दबाव करीब करीब उतना है जितना  दबाव पृथ्वी की सतह से ३५ किलोमीटर ऊपर जाकर होगा . पृथ्वी के ६ किलोमीटर के अर्धव्यास वाले वायुमंडल की तुलना में मंगल का वायुमंडल १०.८ किलोमीटर अर्धव्यास का है .मंगल के वायुमंडल में मुख्यतः ९५ % कार्बोन डाई   ओक्साइड , ३% नाइट्रोजन  और १.६ % आर्गन गैसें हैं . बचे हुए ०.६ % में ओक्सिजन और जल वाष्प के निशान हैं. वायुमंडल धूल से भरा है .    मंगल का तापमान -१२५ F  से २३ F  के बीच रहता है . मंगल की दूरी सूर्य से पृथ्वी की दूरी की डेढ़ गुना है , इसलिए उसे पृथ्वी की तुलना में मात्र ४३% प्रकाश ही सूर्य से मिल पाता है.  पूरे  सौर मंडल में मंगल ही एक ऐसा गृह है जहाँ पर सबसे शक्तिशाली धूल के बवंडर आते हैं . अपने सर्वाधिक रूप में ये बवंडर पूरे ग्रह को एक साथ लपेट लेते हैं . 
जुलाई १९९६ में अमरीका के जोहन्सन स्पेस सेंटर के डॉक्टर दविड़ मके और उनकी टीम ने एक सनसनीखेज घोषणा से विश्व को चौंका दिया . उनका दावा था कि उन्हें मंगल से टूट कर पृथ्वी पर गिरे एक खंड में जीवन संकेतक बैक्टीरिया होने के प्रमाण मिलें हैं . ये खंड अन्टार्क्टिका ध्रुव स्थित अल्लें हिल नामक जगह पर १९८४ में प्राप्त किये गए थे . अनुमान था कि ये खंड करीब १२००० वर्षों पूर्व वहाँ गिरा था . इस अनुसंधान ने पूरे विश्व में मंगल में जीवन होने के प्रति काफी आशाएं जगा दी . लेकिन धीरे वैज्ञानिकों में इस खोज के प्रति संदेह आते गए और यह निष्कर्ष नकार दिया गया . इसका आधार ये था कि बहुत सारे रसायन और आणविक संरचनाएं जो इस खंड पर पाई गयी , उसका होना, जीवन के होने न होने से सम्बंधित नहीं था .और जो बैक्टेरिया के नन्हे आकार थे, वो पृथ्वी पर पाए जीवन से १००० गुना सूक्ष्म थे, इसलिए उन्हें जीवन से मिलाना उचित नहीं था . कुछ कार्बन आधारित रसायन जो पाए गए थे , उनके बारे में ऐसा तर्क था कि वो उस खंड में पृथ्वी पर गिरने के बाद समा गए थे; क्योंकि उन १२००० वर्षों के दौरान ऐसे मौके आये थे जब वो खंड जल में भी डूब  गया था . वैज्ञानिकों का ये मानना है कि मंगल कि परिस्थितियां पहले से अब काफी बदली है ; इसलिए अगर उस आपतित खंड से जीवन के होने के प्रमाण नहीं मिलते तो जीवन के न होने के भी कोई बहुत बड़े कारण नहीं है !

 ३. शनि (Saturn) : वृहस्पति के समान शनि का वायुमंडल भी बहुत प्रतिकूल है ; शक्तिशाली गुरुत्व शक्ति , काफी अधिक  दबाव, २२५ से १००० मील प्रति घंटे के बीच चलने वाली तेज हवाएं और -२७० डिग्री से ८० डिग्री के बीच रहने वाला तापमान - ऐसे में जीवन की कल्पना बहुत मुश्किल है . ८० डिग्री तापमान वाले क्षेत्र में दबाव उतना ही है जितना समुद्र की सतह से २ मील नीचे जाने पर मिलेगा . शनि ग्रह का बाह्य वातावरण बना है  ९६.३ % मोलिकुलर ह्य्द्रोजन और ३.२५ हिलिअम गैसों से . इसके अलावा वायुमंडल में अमोनिया , एसितिलिन, इथेन , फोस्फाइन , और मीथेन गैसों की उपस्थिति है.  शनि के उपरी बादलों की तह में मुख्यतः अमोनिया के क्रिस्टल और निचली तह में अमोनियम सल्फाइड या जल कण पाए जाते हैं .
वृहस्पति के सामान वातावरण में ऊर्जा के भी स्त्रोत हैं , मुख्यतः बिजली, अल्ट्रा वायोलेट किरणे, और विद्युत से चार्ज कण . शनि  ग्रह के अंतर तक जाने से तापमान १०००० डिग्री से ऊपर और दबाव पृथ्वी के समुद्र की सतह का ३० लाख गुना अधिक पाया जाएगा .कुल मिला के निष्कर्ष भी वही की शनि ग्रह पर भी जीवन कम से कम उस रूप में पाए जाने की सम्भावना नहीं जो हम पृथ्वी पर देखते हैं .

 ४ टाईटन (Titan) :  टाईटन शनि ग्रह का एक उपग्रह है ;वैसे ही जैसे पृथ्वी के लिए चाँद .वैज्ञानिक मानते हैं की इस उपग्रह में पृथ्वी के वायुमंडल से बहुत समानताएं हैं ; लेकिन एक बड़ी विषमता है कि  टाईटन का तापमान बहुत ज्यादा ठंडा है ; करीब -३३० डिग्री से -२९० डिग्री के बीच . इतने ठन्डे वातावरण में जल का वाष्प रूप में वायुमंडल  में पाया जाना असंभव है . टाइटन के वायुमंडल में एक प्रकार का धुआं सा है जो सूर्य की किरणों का वापस शुन्य में परावर्तित कर देता है ; परिणाम स्वरुप यहाँ सूर्य की किरणों का पृथ्वी  की बनिस्पत सिर्फ १% अंश ही पहुँचता है ; यही कारण है यहाँ की भीषण ठंडक का . 
पृथ्वी की तरह वहां के वायुमंडल में प्रचुर मात्र में नाइट्रोजन गैस है ; इसके अलावा कई किस्म के जटिल अणु भी हैं. मीथेन गैस का तो एक महासागर होने की सम्भावना है; जो हो सकता है किसी न किसी तरल का भण्डार हो . ठन्डे तापमान के अलावा बाकी सारी बातें जीवन के होने के लिए अनुकूल हैं . वैज्ञानिकों का मानना है की पृथ्वी पर भी ऐसे प्राणी पाए जाते हैं जो अति शीत में भी जीवित रहतें हैं , तो संभव है कि वहां के तापमान में भी जीवित रह सकने वाले प्राणी होंगे .  वहां के वातावरण में मीथेन और ईथेन गैसों के बदल हैं . पृथ्वी के सामान हवा और वर्षा होने के प्रमाण हैं . और पृथ्वी की सतह की तरह रेतीले पहाड़ , नदियाँ , झीलें और समुद्र (संभवतः मीथेन और ईथेन तरल अवस्था में ) आदि का होना भी संभावित है . मौसम बदलने के भी संकेत हैं . वैज्ञानिक टाईटन को पृथ्वी का प्रारम्भिक रूप मानते हैं . इस उपग्रह को ब्रह्माण्ड में जीवन के कण देने का  उदगम   भी मानते हैं .कुल मिला कर टाईटन उपग्रह पर जीवन होने की बहुत अधिक सम्भावना है ; जीवन जो जल की जगह मीथेन के समुद्र में सुरक्षित  हो !
जीवन की ये गुत्थियाँ कभी सुलझ पाएंगी या नहीं ? वैज्ञानिक अपने प्रयोगों में लगे रहेंगे . क्या जीव का निर्माण प्रयोगशाला में हो पायेगा ? क्या ऐसी कोई सफलता मानव के कल्याण के लिए उचित होंगी ? बहरहाल जीवन और श्रृष्टि यूँ ही चलती रहेगी . विश्व को सुचारू रूप से चलाने के लिए वैदिक कर्म फल सिद्धांत , जीवाणु की अक्षुणता , पुनर्जन्म का सिद्धांत और मोक्ष की प्राप्ति का लक्ष्य  - ये विश्वास ही मान्य हैं . मानव समाज की निर्धारित मर्यादाओं का पालन इन्ही विश्वासों के सहारे संभव है .

1 टिप्पणी:


  1. विज्ञान के अनगिनत आविष्कारों के कारण मनुष्य का जीवन पहले से अधिक आरामदायक हो गया है। दुनिया विज्ञान से ही विकसित हुई हैं। इसकी तीन मुख्य शाखाएँ हैं : भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान

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